आज फिर तबियत खिली सी है ,
आज फिर वो हस के मचली सी है ,
उसके हसने सो जो झरते हैं फूल ,
लम्हा -लम्हा सजाती हूँ उनको ,
दरो -दीवार पर ,
कहीं उसकी खिलखिलाहट
चुप न हो जाए ,
इसी डर से काजल का टीका लगाती हूँ ,
जो उसे दीखता नहीं कहीं ,
वो नहीं मानती इन बातों को ,
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
सभी रूढ़ियों को
उसकी(पाखी ) सलामती के लिए ..............
10 comments:
नीलम जी,
बेहद भावुक कर दिया है आपने.
माँ होने की जिम्मेदारी उसी तरह हैं जैसे दुनिया की जिम्मेदारी ईश्वर पर. आप अपना काम करते रहिये, बच्चे बड़े होने पर खुद ही समझ जाते हैं :) .
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
अति मंजुमये सच्चा आप ने जो अपने भाव तो जो व्यक्त किया बड़ा हे सुन्दर है
कहीं उसकी खिलखिलाहट
चुप न हो जाए ,
इसी डर से काजल का टीका लगाती हूँ ,
जो उसे दीखता नहीं कहीं ,
वो नहीं मानती इन बातों को ,
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
नीलम जी,
बेहद भावुक कर दिया है आपने.
maa ki beti, beti ki maa...
hote poorak yahan do jahan..
mera ansh to mera vansh tu..
sanjo ke rakh lun tumjhe kahan kahan..
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
सभी रूढ़ियों को.....
एकदम सच...
और...
मेरा अंश तू, मेरा वंश तू..
संजो के रख लूं तुझे कहाँ कहाँ......
क्या बात कही है राघव जी ने..............
पाखी की खुशियाँ ऐसे ही महकती रहे...
आपके ब्लॉग की हिरोईन पाखी की सलामती के लिए बहुत बहुत दुआएं...
आमीन....................!
वो नहीं मानती इन बातों को ,
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
सभी रूढ़ियों को--
--दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ हैं।
'बेचैन आत्मा' पर आपकी टिप्पणी को देखा जिसमें मेरी टीप का जिक्र
था , मेरे मंतव्य को आपने समझा इसके लिए पहले धन्यवाद .. आपने कहा
की आप अवधी जानती हैं , यह मेरे लिए गर्व की बात है , मैं प्राथमिक रूप से
अवधी - लेखक हूँ .. हिन्दी में शोध-बोध यूँ ही किया करता हूँ पर 'गाँव' की मिट्टी
की सोंधी खुशबू तो अवधी में ही रख पाता हूँ .. इसके लिए आप मेरा अवधी ब्लॉग
देख सकती हैं , अगर उसमें कुछ ठीक लगेगा तो स्वयं को सार्थक सा समझूंगा , लिंक
यह है ---
http://awadhikaiaraghan.blogspot.com/
.
अब बात आपकी कविता पर ...
आधुनिकता के नाम पर हम हर जगह तर्काश्रित नहीं हो सकते , अंधविश्वास ही सही
पर 'काजल के टीका' में कितना वात्सल्य है ! पूरी संतान-स्नेह-संस्कृति का आकर्षण
के ख़ास पहलू को जैसे दिखा रहा हो यह ! लम्बी यात्रा की अनुगूंज ! आपकी यह पंक्ति
बड़ी सटीक है ;
वो नहीं मानती इन बातों को ,
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
सभी रूढ़ियों को
उसकी(पाखी ) सलामती के लिए ..............
.
--------- आपके लेखन से गुजरते हुए ऐसा लगा कि कुछ पुराने और स्वागतयोग्य
पक्ष सहज ही अभिव्यक्त हो जाते हैं ! इस विशिष्टता को बनाये रखियेगा ..
आपके ब्लॉग का फीड संजो लिया है , यथासंभव आता रहूंगा पर कभी कभी कुछ खरा
बोल जाता हूँ ( ठेठ गंवार की तरह ) तो उसे माफ़ कीजिएगा ! पुनः आभार !
भगवान् जी से प्रार्थना है
कि पाखी के लिए मांगी गयी
हर दुआ
कुबूल हो जाए ......
हमेशा ... ... ..
आप सभी कि आवक अच्छी लगती है ............यूँ ही आते रहिएगा
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