Monday, December 1, 2008

बेटी

समझदार होती बेटी ,
कुछ इस तरह होती है ,
जैसे बारिश के बादका इन्द्रधनुष
काली घटा की घनघोर बारिश के बाद ,
हरी, धुली , स्वच्छ और मौन प्रकृति
बेटी का बड़ा होना ,उसका गुनगुनाना
माँ की जानबूझ कर की गई गलतियों पर ,
उसका झुन्झुन्लाना ,उसका रूठ जाना,
बहुत कुछ शामिल है अब उसके साथ ,
जिसे भेजा है ,खुदा ने मेरे पास ,
मेरी बेटी की शक्ल में ,
वो है एक समझदार बेटी ,
होनहार बेटी

Friday, November 28, 2008

पंख

एक बार सपने में देखा मैंने ,
पहने हुए हैं सुनहरे पंख मैंने ,
उन पंखों को लगाकर उड़ रही हूँ मै,
सब कुछ देख रही थी मै ,
यह दुनिया कितनी खूबसूरत है ,
यहाँ के लोग उससे भी ज्यादा ,
उनके सपने भी हैं खूबसूरत ,
जितने की मेरे ,
पर थोड़े समय के बाद ,
नींद से जगाया गया मुझे ,
हकीकत का अहसास कराया गया मुझे
हकीकत की दुनिया इतनी भयानक देख
सहम गई थी मै ,
सबसे पहले रखा उन पंखों को ,
सहेजकर ,
इस डर से कि कोई ,
छीन न ले मेरे वो सपने
वो सपना ,
हौसला ,
रास्ता ,
सफर,
मंजिल ।
आज जब देखा कि बेटी ने बुनने शुरू किए हैं ,
कुछ सपने ,
मैंने वो संदूक खोला है ,
जिसमे हैं कुछ डायरियां
दुनिया को बदल देने वाली ,
काल्पनिक तस्वीरें ,
और मेरे वो सुनहले पंख ,
धीरे से उसे पहना दिए हैं ,
और नींद में ही उसके कान में कह दिया है ,
बेटा उड़ जाओ ,
देखो वो सारे सपने ,
मेरी भी उड़ान अब तुम ही उडोगी,
उस ओर जहां मिलेगा एक ,
नवल प्रभात ,
नया विश्वास ,
यही एक माँ का सपना है ,
जो उसने सिर्फ़ तेरे लिए ही जन्मा है

Thursday, October 30, 2008

जाले

जाले
एक महीने और तेईस दिन हो गए हैं
किस बात के ?
एक औरत के पुनर्जनम के
कैसे ?
ईश्वर ने शायद गलती से उसके पते पर यमराज भेज दिया था ,
फिर क्या हुआ ?
उसने उसकी बेटी को रोते हुए देखा ,
अपनी करुना को उफान पर आते हुए देख
चला गया वहाँ से
क्यों ?
क्योंकि वह भी एक मनुष्य है ,
मनुष्य कैसे किसी एक
की जान लेकर उसकी जान (बेटी)
कोतड़पता हुआ छोड़ सकता था ?
इतना निर्मम तो नही था वह
फिर ?
आज वह औरत ठीक हो गई है ,
और प्रकृति द्बारा निर्मित उन जालों को ,
साफ़ कर रही है जो लग गए हैं ,
घर की दीवारोंपर ,
संबंधों पर,
रिश्तों पर
अपने पुनर्जन्म की संध्या पर
दोस्तों ,
रिश्तेदारों ,
नन्हे दोस्तों ,
कुछ अनजान हमदर्दों को शुक्रिया कहती है ,
मन ही मन
और नही
भूलती उस यमराज को भी ,
जिसने एक बेटी को
उसकी माँ वापस कर दी
........... उसकी माँ वापस कर दी

Wednesday, October 15, 2008

पाखी -बड़ी होती मेरी बेटी

बड़ी होती मेरी बेटी

रोज सुबह तैयार होती

स्कूल को जाती

नए नए इनाम लाती

कभी तुनकती

कभी झगड़ती

मेरी बेटी ,

साथ में ,

अहसास दिलाती ,

की माँ बस ,

अब तुम थक -

गई हो ,

थोड़ा आराम करो ,

लाती हूँ ,चाय बनाकर ,

तुम्हारे लिए ,

चाय की चुस्कियों के ,

साथ ,अपनी नम कोरों को

पोंछती हूँ ,

और सोचती हूँ ,

क्यूँ

बड़ी होती है बेटी