समझदार होती बेटी ,
कुछ इस तरह होती है ,
जैसे बारिश के बादका इन्द्रधनुष
काली घटा की घनघोर बारिश के बाद ,
हरी, धुली , स्वच्छ और मौन प्रकृति
बेटी का बड़ा होना ,उसका गुनगुनाना
माँ की जानबूझ कर की गई गलतियों पर ,
उसका झुन्झुन्लाना ,उसका रूठ जाना,
बहुत कुछ शामिल है अब उसके साथ ,
जिसे भेजा है ,खुदा ने मेरे पास ,
मेरी बेटी की शक्ल में ,
वो है एक समझदार बेटी ,
होनहार बेटी
हमारी बेटी पाखी को समर्पित कुछ हमारी भावनाएं कुछ उसकी महात्वाकान्क्षाएँ, जिन्दगी को भरपूर जीने की कोशिश देखें की आगे आगे होता है क्या
Monday, December 1, 2008
Friday, November 28, 2008
पंख
एक बार सपने में देखा मैंने ,
पहने हुए हैं सुनहरे पंख मैंने ,
उन पंखों को लगाकर उड़ रही हूँ मै,
सब कुछ देख रही थी मै ,
यह दुनिया कितनी खूबसूरत है ,
यहाँ के लोग उससे भी ज्यादा ,
उनके सपने भी हैं खूबसूरत ,
जितने की मेरे ,
पर थोड़े समय के बाद ,
नींद से जगाया गया मुझे ,
हकीकत का अहसास कराया गया मुझे
हकीकत की दुनिया इतनी भयानक देख
सहम गई थी मै ,
सबसे पहले रखा उन पंखों को ,
सहेजकर ,
इस डर से कि कोई ,
छीन न ले मेरे वो सपने
वो सपना ,
हौसला ,
रास्ता ,
सफर,
मंजिल ।
आज जब देखा कि बेटी ने बुनने शुरू किए हैं ,
कुछ सपने ,
मैंने वो संदूक खोला है ,
जिसमे हैं कुछ डायरियां
दुनिया को बदल देने वाली ,
काल्पनिक तस्वीरें ,
और मेरे वो सुनहले पंख ,
धीरे से उसे पहना दिए हैं ,
और नींद में ही उसके कान में कह दिया है ,
बेटा उड़ जाओ ,
देखो वो सारे सपने ,
मेरी भी उड़ान अब तुम ही उडोगी,
उस ओर जहां मिलेगा एक ,
नवल प्रभात ,
नया विश्वास ,
यही एक माँ का सपना है ,
जो उसने सिर्फ़ तेरे लिए ही जन्मा है
पहने हुए हैं सुनहरे पंख मैंने ,
उन पंखों को लगाकर उड़ रही हूँ मै,
सब कुछ देख रही थी मै ,
यह दुनिया कितनी खूबसूरत है ,
यहाँ के लोग उससे भी ज्यादा ,
उनके सपने भी हैं खूबसूरत ,
जितने की मेरे ,
पर थोड़े समय के बाद ,
नींद से जगाया गया मुझे ,
हकीकत का अहसास कराया गया मुझे
हकीकत की दुनिया इतनी भयानक देख
सहम गई थी मै ,
सबसे पहले रखा उन पंखों को ,
सहेजकर ,
इस डर से कि कोई ,
छीन न ले मेरे वो सपने
वो सपना ,
हौसला ,
रास्ता ,
सफर,
मंजिल ।
आज जब देखा कि बेटी ने बुनने शुरू किए हैं ,
कुछ सपने ,
मैंने वो संदूक खोला है ,
जिसमे हैं कुछ डायरियां
दुनिया को बदल देने वाली ,
काल्पनिक तस्वीरें ,
और मेरे वो सुनहले पंख ,
धीरे से उसे पहना दिए हैं ,
और नींद में ही उसके कान में कह दिया है ,
बेटा उड़ जाओ ,
देखो वो सारे सपने ,
मेरी भी उड़ान अब तुम ही उडोगी,
उस ओर जहां मिलेगा एक ,
नवल प्रभात ,
नया विश्वास ,
यही एक माँ का सपना है ,
जो उसने सिर्फ़ तेरे लिए ही जन्मा है
Thursday, October 30, 2008
जाले
जाले
एक महीने और तेईस दिन हो गए हैं
किस बात के ?
एक औरत के पुनर्जनम के
कैसे ?
ईश्वर ने शायद गलती से उसके पते पर यमराज भेज दिया था ,
फिर क्या हुआ ?
उसने उसकी बेटी को रोते हुए देखा ,
अपनी करुना को उफान पर आते हुए देख
चला गया वहाँ से
क्यों ?
क्योंकि वह भी एक मनुष्य है ,
मनुष्य कैसे किसी एक
की जान लेकर उसकी जान (बेटी)
कोतड़पता हुआ छोड़ सकता था ?
इतना निर्मम तो नही था वह
फिर ?
आज वह औरत ठीक हो गई है ,
और प्रकृति द्बारा निर्मित उन जालों को ,
साफ़ कर रही है जो लग गए हैं ,
घर की दीवारोंपर ,
संबंधों पर,
रिश्तों पर
अपने पुनर्जन्म की संध्या पर
दोस्तों ,
रिश्तेदारों ,
नन्हे दोस्तों ,
कुछ अनजान हमदर्दों को शुक्रिया कहती है ,
मन ही मन
और नही
भूलती उस यमराज को भी ,
जिसने एक बेटी को
उसकी माँ वापस कर दी
........... उसकी माँ वापस कर दी
एक महीने और तेईस दिन हो गए हैं
किस बात के ?
एक औरत के पुनर्जनम के
कैसे ?
ईश्वर ने शायद गलती से उसके पते पर यमराज भेज दिया था ,
फिर क्या हुआ ?
उसने उसकी बेटी को रोते हुए देखा ,
अपनी करुना को उफान पर आते हुए देख
चला गया वहाँ से
क्यों ?
क्योंकि वह भी एक मनुष्य है ,
मनुष्य कैसे किसी एक
की जान लेकर उसकी जान (बेटी)
कोतड़पता हुआ छोड़ सकता था ?
इतना निर्मम तो नही था वह
फिर ?
आज वह औरत ठीक हो गई है ,
और प्रकृति द्बारा निर्मित उन जालों को ,
साफ़ कर रही है जो लग गए हैं ,
घर की दीवारोंपर ,
संबंधों पर,
रिश्तों पर
अपने पुनर्जन्म की संध्या पर
दोस्तों ,
रिश्तेदारों ,
नन्हे दोस्तों ,
कुछ अनजान हमदर्दों को शुक्रिया कहती है ,
मन ही मन
और नही
भूलती उस यमराज को भी ,
जिसने एक बेटी को
उसकी माँ वापस कर दी
........... उसकी माँ वापस कर दी
Wednesday, October 15, 2008
पाखी -बड़ी होती मेरी बेटी
बड़ी होती मेरी बेटी
रोज सुबह तैयार होती
स्कूल को जाती
नए नए इनाम लाती
कभी तुनकती
कभी झगड़ती
मेरी बेटी ,
साथ में ,
अहसास दिलाती ,
की माँ बस ,
अब तुम थक -
गई हो ,
थोड़ा आराम करो ,
लाती हूँ ,चाय बनाकर ,
तुम्हारे लिए ,
चाय की चुस्कियों के ,
साथ ,अपनी नम कोरों को
पोंछती हूँ ,
और सोचती हूँ ,
क्यूँ
बड़ी होती है बेटी
रोज सुबह तैयार होती
स्कूल को जाती
नए नए इनाम लाती
कभी तुनकती
कभी झगड़ती
मेरी बेटी ,
साथ में ,
अहसास दिलाती ,
की माँ बस ,
अब तुम थक -
गई हो ,
थोड़ा आराम करो ,
लाती हूँ ,चाय बनाकर ,
तुम्हारे लिए ,
चाय की चुस्कियों के ,
साथ ,अपनी नम कोरों को
पोंछती हूँ ,
और सोचती हूँ ,
क्यूँ
बड़ी होती है बेटी
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