Thursday, December 30, 2010

पापा उन्होंने तो तुम्हारे looks पर नज़र लगाई थी ना .................

पापा उन्होंने तो तुम्हारे looks पर नज़र लगाई थी ना .................

पाखी अब बड़ी हो रही है और समझदार भी ,पर बचपना कही कही झलक ही जाता है ,अभी कुछ दिनों पहले की बात है ,हम लोग कही बाहर गए थे ,इधर दो -चार दिनों से उल्टा सीधा खाना खाने की वजह से पतिदेव बीमार पड़ गए ,पर वो बीमार हो जाए ,ऐसा वो मानने को हरगिज तैयार नहीं होते हैं सो लगे बहाने ढूँढने की शायद ये वजह हो ,या फिर वो वजह हो ,थोड़ी देर के बाद वो किसी निष्कर्ष पर पहुँच ही गए .उन्होंने बताया की वो उन्हें नज़र लग गयी है किसी की वो फलां जगह उनकी मिसेज ने घूर -घूर के देखा था इसलिए तबियत खराब हो गयी ,हम उनकी मजाक की आदत से वाकिफ़ हैं सो ,मुस्कुराते हुए अपना काम करने लगे ,थोड़ी देर बात पाखी को भी इस बात से वाकिफ़ कराया गया की तुम्हारे पापा को नज़र लग गयी है .पाखी ने बड़ी मासूमियत से पूछा,
पापा एक बात बताओ उन्होंने तो तुम्हारे चेहरे को देखा था ,तो नज़र तो looks को लगनी चाहिए थे पर तुम्हारा तो stomach upset hai naa .............
पेट पर नज़र तो नहीं लगी थी ना ..........................
हम सभी का हस हस कर बुरा हाल था ,सोचा आप सब से भी साझा की जाए ये बात ................कैसी रही .

Tuesday, September 14, 2010

नन्ही करामाती

वो नाजुक सी कली,
वो मिश्री की डली,
वो किस्से सुनाती
वो जब भी आती
दिल से आती
वो सब देखती
सब समझती
दुनिया की
कडवाहट और तल्खी
वो सिर्फ कहती
आँखों से अपनी
चलते हैं दूर कहीं ,
जहां हो बसती
परियां या शहजादी
हो सिर्फ जश्न और बाराती
वो थी हवा बासंती
या थी नन्ही करामाती

Tuesday, July 6, 2010

local brands ki चिड़ियाँ

याद आती है वो शाम ,जब पाखी उदास हमारे पास आती है ,और कहती है ,मम्मी हमे कोई pet , अपना काम करते हुए वापस मुड कर उनसे पूछा ये अचानक pet की फरमाइश कैसे बेटा ....................
मम्मी जरा इधर बैठो ,एक तो हम अकेले ,दूसरे तुम हमेशा कुछ काम में लगी रहती हो ,तो हमे खाली टाइम के लिए एक pet चाहिए ही चाहिए .अब तो पाखी की जिद ,कभी आँखों में आंसू भरकर कभी ,रोष के साथ ,तकरीबन एक सप्ताह बीत गया हम दोनों का यह सोचते -सोचते कि पाखी को कौन सा pet दिलाया जाए फ्लैट में dog न बाबा न बाबा,कुत्ते हमे पसंद नहीं एक बार हमारे प्यारे rabbit को खा गया था ,तब से अगर हमारा बस चलता तो हम दुनिया के सारे कुत्तों कि प्रजाति को ही ख़तम कर देते पर ,प्रकृति के नियम को तोडना ठीक नहीं सोच कर अपने आप को समझा लिया ,तो पाखी ने खुद ही बताया या सुझाया किbirds ,

अपनी सहेली से पता किया और सुन्दर सा पिंजड़ा खरीदा गया पहले फिर उनकी चिड़ियाँ हम दोनों को ही जानवर या पक्षियों को पिंजरों में देखना पसंद नहीं ,तो पाखी के पापा ने सोचा थोड़े दिन में जब इनका शौक पूरा हो जाएगा
तब इन्हें उड़ादेंगे लिहाजा बहुत महंगी चिड़िया खरीदनी नहीं थी हलकी पीली और हरी रंग कि वो चिड़ियाँ 250 रुपये में खरीदी गयीं ।
पाखी ने उन्हें पीछे अपने साथ रख लिया ,कुछ जरूरी बातें पूछ कर हम घर आ गए ,पाखी के साथ खेलने वाले बच्चों का आने जाने का सिलसिला शुरू हुआ उन्हें देखने का पाखी व्यस्त हो गयी उन्हें खिलाने में ,उन्हें देखने में अब सर्दियों के दिन थे हम लोग इन बातों से अनभिज्ञ कि वो किस तापमान में रहती हैं (तब गूगल की सुविधा उपलब्ध नहीं थी )पाखी ने अगले दिन स्कूल जाने से पहले कई हिदायतें दी मम्मी इनका ध्यान रखना ,नीचे की ट्रे साफ़ कर देना और खाना और पानी बराबर रख देना .........................ओके बेटा
पाखी स्कूल गयी हमने सबसे पहले अपने नए मेहमानों का काम पूरा किया उसके बाद अपने घर के कामों में मशगूल हो गए .थोड़ी देर के बाद जैसे ही हमारी नज़र पिंजरे पर पड़ी तो ...................................
हमने फ़ोन करके पाखी के पापा को बताया की वो उनमे से एक चिड़िया तो मर गयी है अब ...................एक काम करते हैं पाखी के आने से पहले उसे हटवा देते हैं और पाखी के आने पर कह देंगे की वो गलती से पिंजरा खुला रहने से वो उड़ गयी ..............उसे दुःख नहीं होगा
नहीं तुम ऐसा कुछ मत करो ,मै तो पहले ही मना कर रहा था ,let her come and face this reality ,हम दुखी
मन से पाखी का इन्तजार करने लगे ,पाखी आते ही भागी पिंजरे के पास और एक शिथिल चिड़िया को देख कर ठिठक गयी ,जैसे मेरे पास कोई जादू की छड़ी हो उसे घुमाते ही वो चिड़िया उठ खड़ी होगीपर ऐसा तो न होना था और न ही हुआ .........................
पाखी की आँखों में आंसू मम्मी क्या हुआ उसे ?????????????
पता नहीं बेटा ....................
मम्मी अब वो अकेले कैसे रहेगी ,इसका क्या करेंगे ???????????
कई सारे अनुत्तरित सवाल वैसे ही थे .............
माली को बुलवा कर उस चिड़िया को बाहर निकलवा कर उसके एक जगह आर दफ़न करवा दिया
पाखी को थोडा वक़्त लगा वो वो उस अकेली बची चिड़िया की परवरिश में लग गयी ....................
शाम को उनके पापा के आने पर वो बड़े ही दुखी मन से" पापा वो चिड़िया क्यूँ मर गयी "
कोई बात नहीं हम दूसरी ले आयेंगे कह कर दिलासा दिया गया पाखी को
अगले दिन वो फिर चलते समय पहले अपनी चिड़िया रानी को बाय करने गयीं और फिर बाद में हमे .थोड़ी देर बाद उस चिड़िया ने भी खाना -पीना बंद कर दिया और धीरे धीरे पाखी के आने तक वो शिथिल होने लगी और मृत पाय सी होने लगी हमने पहले भी सुना था की चिड़िया अगर मर जाए तो दूसरी भी मर जाती पर इस बात को मन में ही रखा, ये लोगों का बहम होगा यह सोचकर ,पाखी के आने के कुछ देर बाद उस चिड़िया ने भी प्राण त्याग दिए और पाखी ने फूट -फूट कर रोना शुरू कर दिया .............
सॉरी मम्मी आगे से हम कभी कोई pet नहीं लायेंगे हमने कहा कोई बात नहीं पाखी को सामान्य होने के लिए जो भी समझ में आया वो किया ,थोड़ी देर में वो उस घटना को भूल चुकी थी ............
शाम को उनके पापा को इशारा किया हमने की इस बारे उससे कोई बात नहीं करें ,थोड़े दिनों में जब वो पूरी तरह सामान्य हो गयी तो उनके पापा ने चिढाने के लिए उनसे पूछा तुम तो बहुत मस्त लड़की हो अपनी चिड़ियों को इतनी जल्दी भूल गयीं
सारी गलती तो तुम्हारी ही है पापा हम कह रहे थे की वो नीली वाली दिलवाओ ,तुमने दिलवा दी local brand ki birds तो उन्हें तो मरना ही था .......................
अब पापा अवाक थे (शायद वो भी समझ रहे थे कि पाखी अब सयानी हो रही है )
आज के लिए इतना ही ..............................

Thursday, April 29, 2010

छू -मंतर

छू -मंतर


पाखी के साथ अक्सर यूं होता था ,गिरने पर या चोट लगने पर उनके रोने की शुरुआत करने से पहले ही एक खेल शुरू कर देते थे हम .....................

जय काली कलकत्ते वाली
तेरा वचन न जाए खाली
बच्चा लोग बजाओ ताली
छू -मंतर
छू -मंतर
छू -मंतर

जोर से बोलते हुए उस हाथ को मुट्ठी बनाते हुए उस चोट की जगह पर लहराते हुए उसमे एक जोर की फूँक डालते
हुए दूर फ़ेंक देते थे ,और पाखी उस चोट को दूर जाते हुए देखने लगती थी ,यह नुस्खा बड़ा कारगर साबित होता था ,
बड़ी से बड़ी चोट लगने पर भी उसके कीमती आंसू गिरने से रोक लेते थे ,वक़्त गुजरने लगा ,पाखी बड़ी होने लगी ,
लिहाजा चोट भी लगनी बंद होने लगी ,पर परसों की बात है वैष्णो माता के दर्शन के लिए ज्यादा चलने की वजह से
उनके पैरों में दर्द हो रहा था ,उसके दर्द को कम करने की भूली हुई वो तरकीब याद आई अचानक हमने शुरू किया

जय काली कलकत्ते वाली
तेरा वचन जाए खाली
बच्चा लोग बजाओ ताली
छू -मंतर
छू -मंतर
छू -मंतर

अपनी उस मुट्ठी को पाखी के पास उसमे फूँक मारने को कहा ,पाखी ने फूँक की जगह थोड़े गुस्से में कहा

बच्चों जैसी बातें मत किया करो मम्मी ..............................
हमारीमुट्ठी धीरे से खुल गयी ............
और समझ गयी कि पाखी अब बड़ी हो गयी है और समझदार भी

Wednesday, March 31, 2010

उसकी (पाखी की ) सलामती के लिए

आज फिर तबियत खिली सी है ,
आज फिर वो हस के मचली सी है ,
उसके हसने सो जो झरते हैं फूल ,
लम्हा -लम्हा सजाती हूँ उनको ,
दरो -दीवार पर ,
कहीं उसकी खिलखिलाहट
चुप न हो जाए ,
इसी डर से काजल का टीका लगाती हूँ ,
जो उसे दीखता नहीं कहीं ,
वो नहीं मानती इन बातों को ,
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
सभी रूढ़ियों को
उसकी(पाखी ) सलामती के लिए ..............

Monday, February 15, 2010

जब पाखी पहली बार अपना tiffin घर में भूल गयी

पाखी छोटी थी ,बहुत छोटी ,एक माँ के लिए तो उनके बच्चे कब बड़े होते हैं ? तो पाखी कितनी बड़ी थी ????,बस इतनी बड़ी की पारंपरिक रूप से स्कूल जाना और नियमबद्ध होकर औपचारिक तरीके से स्कूल के तौर -तरीकों को सीखना शुरू कर ही रही थी , एक दिन जल्दी -जल्दी में उनका tiffin घर में रह गया ,हमे पता लगा जब वो जा चुकी थी , अब हम क्या करते ???????
स्कूल में नियम की पाबंदी की कुछ भी भेजने पर नहीं लिया जाएगा ,सारा दिन इस उथल -पुथल में गुजरा कि पाखी
भूखी होगी ,एक माँ सबसे ज्यादा तब तडपती जब उसके बच्चे भूखे होते हैं ,किसी काम में मन लगना था और न ही
लगा .समय था कि बीतने का नाम ही नहीं ले रहा था ,कभी कभी आदमी कितना विवश हो जाता है ,किसी तरह वक्त गुजरा और पाखी मैडम हमारी बाहों में ,हम नम आँखों से उसे देखते ।
पाखी आज tiffin तो घर में ही रह गया था फिर .................तो क्या हुआ मम्मी तुम तो बेकार में परेशान हो जाती हो ....
तुमने क्या किया ????????
कुछ खाया ??????????
हाँ
कैसे
simple
हमने अपने एक फ्रेंड से कह दिया कि वो मैम को बता दे कि हम आज tiffin नहीं लाये हैं ,
फिर
मैडम ने सारे बच्चों से कहा कि पाखी को पूरी क्लास अपना खाना शेयर कराएगी मम्मी हमारा पेट तो रोज से ज्यादा ही भर गया ,तुम बेकार में इतना परेशान होती है ,मात्र साढे चार साल की लड़की का पहला सामंजस्य उसके
अपने समाज के साथ ............
अद्भुत था ...............

पाखी तब से ही शायद बड़ी और समझदार होने लगी थी .आजके लिए इतना ही