Wednesday, March 31, 2010

उसकी (पाखी की ) सलामती के लिए

आज फिर तबियत खिली सी है ,
आज फिर वो हस के मचली सी है ,
उसके हसने सो जो झरते हैं फूल ,
लम्हा -लम्हा सजाती हूँ उनको ,
दरो -दीवार पर ,
कहीं उसकी खिलखिलाहट
चुप न हो जाए ,
इसी डर से काजल का टीका लगाती हूँ ,
जो उसे दीखता नहीं कहीं ,
वो नहीं मानती इन बातों को ,
कभी हम ने भी तो नहीं माना था ,
पर एक माँ मानती है दुनिया की
सभी रूढ़ियों को
उसकी(पाखी ) सलामती के लिए ..............