Thursday, November 26, 2009

पाखी और उनके band-aids

पाखी दरअसल घर में अकेली होने के कारण अपनी माँ का लाड प्यार कुछ ज्यादा ही पाती है ,अब इसे विवाद का विषय न बनाते हुए आगे चलते हैं कि क्या ज्यादा बच्चों को लाड -प्यार नही मिलता ,पाखी को एक बच्चे की आकृतिनुमा एक खिलौना बेहद पसंद था ,उसे हम सब फ्रेंड बुलाते थे ,पाखी के साथ साईकिल की सवारी करता ,पीठ पर चढ़ा रहता ,कुछ ऐसा लगता था कि पाखी को भावनात्मक लगाव उस निर्जीव से बढ़ता जा रहा था ,कहीं बाहर जाते हुए पूछने पर पाखी मैडम का प्यारा सा जवाब होता मम्मी band-aids लेती आना .पहले तो हैरत हुई की इतनी नन्ही सी बच्ची न किसी choclete की इच्छा न किसी खिलौने की फ़रमाइश ,बस कुछ band-aids .होता कुछ ऐसा था की गलती से भी फ्रेंड के कहीं चोट लगते ही तुरंत उसे band-aids की मरहम पट्टी होती ,हम सब उस नन्ही बच्ची में स्वयं जन्मी उस माँ को देखते रहते ,उसके उस जतन को देखते रहते ,समय गुजरता गया ,पाखी पढ़ाई के बढ़ते बोझ को अपने कन्धों पर उठाने की सफल कोशिश करने लगी है ,दुनिया को विस्तृत नजरिये से देखने लगी ,काफ़ी समझदार हो गई है .एक दिन घर की सफाई में वो friend हमारे हाथ में आ गया ,और वो सब बातें भी ,पाखी को कुछ बताने से पहले बोली मम्मी तुमने क्या -क्या कूड़ा जमा किया है ,फेको इसको .वो शायद इस आगे बढती हुई दुनिया के साथ कुछ तारतम्य बिठाने की कोशिश कर रही है और हम उन यादों को यहाँ महफूज करने की कोशिश कर रहें हैं .पाखी के पास आज भी band-aids होते हैं .पर किसी फ्रेंड के लिए नही ,सिर्फ़ अपने और अपनी मम्मी के लिए ही ।
पाखी अब बड़ी हो रही है ,और समझदार भी ,(आज के लिए बस इतना ही )

6 comments:

मनोज कुमार said...

अच्छी रचना। बधाई।

Varun Wakiff said...

hmm bilkul sahi waqt k sath saath preferences badal jaati hai aur log bhulte chale jaate hai apni ateet se judi hui ghatanao ko ......aur dosto ko

manu said...

नीलम जी,
पहली बार इसे पढ़ते ही जाने क्यूँ मन अजीब सा हुआ था... पाखी के बर्ताव की वजह से..

अब दो तीन बार फिर से पढ़कर यही लग रहा है..के पाखी अब बड़ी हो रही है....और समझदार भी...

थोड़ी और सक्झ्दार हो जायेगी तो वो भी सब कुछ समेटना सीख जायेगी....अभी वो ऐसी ही ठीक है..
आजकल पढ़ाई ऐसी नहीं रह गयी है के नन्ही जान पढ़ाई के साथ साथ सभी कुछ समेट सके...
उसे भरपूर दुलार दीजिएगा...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यही फर्क है कवि ह्रदय और नए जमाने के साथ कदम ताल करती नई पीढ़ी में
यह आबोहवा का असर है या हमारी चूक
या यही सही है
ईश्वर जाने!
हम कैसे उस चीज को कूड़ा कह सकते हैं जो कभी हमें बहुत प्यारी थी यह मेरी समझ में नहीं आता।
मनु जी की टिप्पणी से सहमत हूँ।

Pooja Anil said...

यही ज़िन्दगी का फलसफा है नीलम जी, जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता जाता है, हम दर्शक बन कर apne सामने घटनाएं घटते देखते हैं, और स्मृति पटल से कब स्मृतियाँ छुप जाती हैं ( गुम नहीं होती, क्योंकि मस्तिषक की क्षमता hamaare इस्तेमाल करने से बहुत अधिक है, शायद pc की RAM से भी ज्यादा :) ) , हम जान भी नहीं पाते... बस रह जाता है वर्तमान.... जो आज है, वही सच है :)..
पाखी ने apne दोस्त को बहुत दुलार दिया, किन्तु समय के साथ आगे बढ़ना ही उसकी नियति है, हम उस से अब यह उम्मीद तो नहीं कर सकते कि अब भी वो उस फ्रेंड को band aid लगाए, किन्तु वास्तविक जीवन में कभी किसी को जरूरत हो तो उसके होंठों पर मुस्कराहट लाने की कोशिश जरूर करे. पाखी को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद.

neelam said...

aap sabhi ka tah-e dil se aabhar .