Friday, November 28, 2008

पंख

एक बार सपने में देखा मैंने ,
पहने हुए हैं सुनहरे पंख मैंने ,
उन पंखों को लगाकर उड़ रही हूँ मै,
सब कुछ देख रही थी मै ,
यह दुनिया कितनी खूबसूरत है ,
यहाँ के लोग उससे भी ज्यादा ,
उनके सपने भी हैं खूबसूरत ,
जितने की मेरे ,
पर थोड़े समय के बाद ,
नींद से जगाया गया मुझे ,
हकीकत का अहसास कराया गया मुझे
हकीकत की दुनिया इतनी भयानक देख
सहम गई थी मै ,
सबसे पहले रखा उन पंखों को ,
सहेजकर ,
इस डर से कि कोई ,
छीन न ले मेरे वो सपने
वो सपना ,
हौसला ,
रास्ता ,
सफर,
मंजिल ।
आज जब देखा कि बेटी ने बुनने शुरू किए हैं ,
कुछ सपने ,
मैंने वो संदूक खोला है ,
जिसमे हैं कुछ डायरियां
दुनिया को बदल देने वाली ,
काल्पनिक तस्वीरें ,
और मेरे वो सुनहले पंख ,
धीरे से उसे पहना दिए हैं ,
और नींद में ही उसके कान में कह दिया है ,
बेटा उड़ जाओ ,
देखो वो सारे सपने ,
मेरी भी उड़ान अब तुम ही उडोगी,
उस ओर जहां मिलेगा एक ,
नवल प्रभात ,
नया विश्वास ,
यही एक माँ का सपना है ,
जो उसने सिर्फ़ तेरे लिए ही जन्मा है