Thursday, April 29, 2010

छू -मंतर

छू -मंतर


पाखी के साथ अक्सर यूं होता था ,गिरने पर या चोट लगने पर उनके रोने की शुरुआत करने से पहले ही एक खेल शुरू कर देते थे हम .....................

जय काली कलकत्ते वाली
तेरा वचन न जाए खाली
बच्चा लोग बजाओ ताली
छू -मंतर
छू -मंतर
छू -मंतर

जोर से बोलते हुए उस हाथ को मुट्ठी बनाते हुए उस चोट की जगह पर लहराते हुए उसमे एक जोर की फूँक डालते
हुए दूर फ़ेंक देते थे ,और पाखी उस चोट को दूर जाते हुए देखने लगती थी ,यह नुस्खा बड़ा कारगर साबित होता था ,
बड़ी से बड़ी चोट लगने पर भी उसके कीमती आंसू गिरने से रोक लेते थे ,वक़्त गुजरने लगा ,पाखी बड़ी होने लगी ,
लिहाजा चोट भी लगनी बंद होने लगी ,पर परसों की बात है वैष्णो माता के दर्शन के लिए ज्यादा चलने की वजह से
उनके पैरों में दर्द हो रहा था ,उसके दर्द को कम करने की भूली हुई वो तरकीब याद आई अचानक हमने शुरू किया

जय काली कलकत्ते वाली
तेरा वचन जाए खाली
बच्चा लोग बजाओ ताली
छू -मंतर
छू -मंतर
छू -मंतर

अपनी उस मुट्ठी को पाखी के पास उसमे फूँक मारने को कहा ,पाखी ने फूँक की जगह थोड़े गुस्से में कहा

बच्चों जैसी बातें मत किया करो मम्मी ..............................
हमारीमुट्ठी धीरे से खुल गयी ............
और समझ गयी कि पाखी अब बड़ी हो गयी है और समझदार भी